The Greatest Guide To Shayari
The Greatest Guide To Shayari
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खामोशी से माँगी हुई मोहब्बत की दुआ हो तुम
प्यार करने वालों को क्यों बुरा मानते है
आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं
वो एक पल ही सही, जिस पल में वो सिर्फ मेरा हो,
यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी न होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति न जाने क्या होती।
Sochte hu ki kya khu tuje.. tere didar ko ankhte trste Hello mere bankr barish k bunde tu bhiga de muje. ik hasi ful ki tra khila de muje tere chuhan se mhak jau ge me ik baar us chuhan ka ahsas kr de muje
Delhi, India stick to famous Urdu poet occupying an area of pleasure in all check here over the world literature. Just about the most quotable poets acquiring couplets for nearly all situations of everyday living
His shayaris on compassion and appreciate are well known until day. He belonged to your Delhi School of ghazals in Urdu and you can learn more about him in his autobiography, Zikr-e-Mir.
Gulab ki mehak bhi fiki lagti hai, Kaun si khushbu mujme basa gayi ho tum, Zindgi hai kya teri chehat ke siva, Yeh keisa khawb aankho ko dikha gayi ho tum.
Kaash use chahne ka arman na hota, most important hosh me rehte hue anjan na hota Na pyar hota kisi pathar dil se humko, Ya phir koyi pathar dil insaan na hota
वक़्त कितना भी बदल जाये मेरी मोहब्बत नहीं बदलेगी
Should you have been deceived in enjoy and can't convey that agony to any person, then Now we have introduced Dhoka Shayari…
इस शे’र में कई अर्थ ऐसे हैं जिनसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वसीम बरेलवी शे’र में अर्थ के साथ कैफ़ियत पैदा करने की कला से परिचित हैं। ‘जहाँ’ के सन्दर्भ से ‘वहीं’ और इन दोनों के सन्दर्भ से ‘मकाँ’, ‘चराग़’ के सन्दर्भ से ‘रौशनी’ और इससे बढ़कर ‘किसी’ ये सब ऐसे लक्षण हैं जिनसे शे’र में अर्थोत्पत्ति का तत्व पैदा हुआ है।
इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद न रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।
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